एनडी (एमबी)

नौसेना डॉकयार्ड (मुंबई)

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

वर्तमान नौसेना डॉकयार्ड की जड़ों को 18वीं शताब्दी की शुरुआत में देखा जा सकता था जब अंग्रेजों के हितों की सेवा के लिए जहाजों की मरम्मत और रिफिट करने के लिए उसी स्थान पर एक समुद्री यार्ड स्थापित किया गया था। जहाज निर्माण के लिए आवश्यक कुशाग्र बुद्धिमत्ता और अभियांत्रिक कौशल को अंग्रेजों ने पहचाना और इसलिए वे विशेषज्ञ शिल्पकार लोजी नुसरवानजी को सूरत से यहां लाए। इस प्रकार, वाडिया परिवार और जहाज निर्माण के साथ उनके सम्बन्धों की विरासत की शुरूआत हुई। इस परिवार की नौ पीढ़ियों द्वारा किए गए योगदान ने हमारे देश के सामुद्रिक इतिहास पर एक अमिट छाप छोड़ी है। उतार-चढ़ाव भरी 19वीं शताब्दी ने डंकन और टारपीडो डॉक और वेट बेसिन की सफल शुरुआत को देखा। आजादी के बाद, नैसैनिक गोदी का पहला बड़ा विस्तार 1952 में भारत सरकार द्वारा अनुमोदित किया गया था। इसका रोड मैप 1946 की क्रेस समिति की रिपोर्ट पर आधारित था जिसने यार्ड की प्रमुख खामियों और कमियों की पहचान की थी। कप्तान एसएम नंदा ने (जो बाद में नेवल स्टाफ के प्रमुख बने) तेजी और निरंतरता से अपनी अपरंपरागत शैली के साथ इस परियोजना का नेतृत्व किया और क्रूजर ग्रेविंग डॉक के निर्माण के काम को जारी रखा जिसे तत्कालीन रक्षा मंत्री वी के कृष्ण मेनन ने 1962 में शुरू किया था। लगभग उसी समय, आईएनएस मैसूर (1957 में तैनात किया गया) के बहुतायत उपकरणों और प्रणालियों की मरम्मत और रखरखाव करने के लिए, एक समकालीन और आधुनिक वेपन्स इलेक्ट्रॉनिक्स कंट्रोल्स ओवरहाल एंड रिपेयर शॉप (वीईसीओआरएस) को गोदी में स्थापित किया गया। 1963 में राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद द्वारा यार्ड की परीक्षा के परिणामस्वरूप, सिस्टम एंड डीजल और भाप परीक्षण जैसे कई इंजीनियरिंग विभाग जोड़े गए। 60 के दशक की शुरुआत में लिएंडर फ्रिगेट प्रोजेक्ट भारतीय नौसेना और रक्षा जहाज यार्ड के लिए जहाज निर्माण का आधार सिद्ध हुआ था। इसके कारण यार्ड के परिसर में पहले बॉयलर का निर्माण भी हुआ। इस बॉयलर ने दुनिया को यह प्रदर्शित करने में भी अग्रणी भूमिका निभाई थी कि हम परिपक्व हो गए हैं और हमें एक खरीदार नौसेना से निर्माता नौसेना में परिवर्तित कर दिया। यार्ड तकनीकी प्रगति में हमेशा अग्रणी रहते हुए, 1970 में अपना पहला कंप्यूटर स्थापित करके डिजिटल क्रांति में प्रवेश किया। इस दशक में भी गोदावरी वर्ग के युद्धपोतों और रणजीत वर्ग के विध्वंसकों की महत्वाकांक्षी प्रेरण योजना के साथ डब्ल्यूईसीओआरएस की तीव्र वृद्धि और टैंडेम में साऊथ ब्रेक वाटर के निर्माण में प्रवेश किया। 1971 के युद्ध में भारत की शानदार जीत का कारण मिसाइल नौकाएं थीं। मिसाइल नौकाओं के इंजनों का बृहद कायापलट करने के लिए, मिसाइल नौका इंजन मरम्मत कार्यशाला की स्थापना 1979 में हुई थी। प्रणोदन और अन्य सहायक प्रणालियों के प्रसार के साथ, 80 के उत्तरार्ध में प्रशीतन और एयर कंडीशनिंग और गैस टर्बाइन विभाग को जोड़ा गया था। इस अवधि के दौरान, यार्ड में बुनियादी ढांचे और सुविधाओं को भी बढ़ाया गया। समय की कसौटी पर खरा कहावत 'दृढ़ता से सफलता' के साथ मुंबई में नौसेना डॉकयार्ड ने यह सुनिश्चित करने के लिए निरंतर काम किया है कि हमारे ‘सैनिक' हर समय 'सागर और युद्ध के योग्य' हैं।

रक्षा नागरिकों के लिए आवास

"भारतीय नौसेना डॉकयार्ड श्रमिक आवास कॉलोनी, पोवई की आधारशिला 11 जनवरी 1950 को बॉम्बे के तत्कालीन राज्यपाल महामहिम राजा महाराज सिंह ने रखी थी। पिछले साढ़े पांच दशकों में, यह कई गुना बढ़ गया है और यह मुंबई में एक सबसे जीवंत और पर्यावरण अनुकूल रिहायस के रूप में उभरा है। भंडूप में लाल बहादुर शास्त्री मार्ग पर स्थित कॉलोनी, 266 एकड़ के क्षेत्र में फैली हुई है। इसमें 10,000 से अधिक रक्षा नागरिक और उनके परिवार हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन, कंजुर मार्ग, केवल 1 किमी दूर है। उल्हासनगर में 11.17 एकड़ के क्षेत्र में फैला एक और स्थान है। इस क्षेत्र को 12 मई 1993 को सेना से स्थानांतरित किया गया था और इसमें टाइप-1 के बत्तीस क्वार्टर हैं।

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