आईएनएस द्वारका

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

आईएनएस द्वारका का ऐतिहासिक महत्व है क्योंकि यह केवल एकमात्र आईएन प्रतिष्ठान है जिसमें हमेशा विरोधी के विरूद्ध सीधी कार्रवाई देखी गई है। इसकी उत्पत्ति का पता पाकिस्तान के साथ 1965 की शत्रुता के पीछे लगाया जा सकता है। 07 सितंबर 1965 को, पाकिस्तानी नौसेना के एक फ्लोटिला ने रडार स्टेशन को अक्षम करने के उद्देश्य से द्वारका शहर पर एक छोटे पैमाने पर बमबारी की थी। हालांकि, जब सीमित जुड़ाव के कारण रणनीतिक मूल्य का महत्वहीन नुकसान हुआ, तब भारतीय नौसेना को पाकिस्तान के नजदीक एक अग्र चौकी स्थापित करने की अनिवार्य आवश्यकता का एहसास हुआ। परिणामस्वरूप, नौसेना ऑफिसर-इन-चार्ज (कथियावार) के नियंत्रण में पोर्ट ओखा में फरवरी 1966 को एक छोटी सी अग्र चौकी बनाई गई। 26 नवंबर 1972 को, चार अधिकारी और 59 नाविकों वाले इस छोटे सी चौकी को इसके वर्तमान स्थान पर आईएनएस द्वारका के रूप में नियुक्त किया गया। 07 जुलाई 1983 को एनओआईसी (कथियावार) को एनओआईसी (सौराष्ट्र) के रूप में पुनर्नियुक्त किया गया। मार्च 1985 में, एनओआईसी (सौराष्ट्र) के कार्यालय को विभाजित किया गया और कमांडर के पद के अधिकारी को कमांडिंग अधिकारी, आईएनएस द्वारका के रूप में नियुक्त किया गया। आईएनएस द्वारका, एनओआईसी (गुजरात) के परिचालनात्मक और प्रशासनिक कमांड के अधीन है।

कार्य और भूमिका

आईएनएस द्वारका को निम्नलिखित भूमिकाएं सौंपी गई हैं:-

  • पोर्ट ओखा का रक्षा और डीप वाटर चैनल के लिए पोर्ट/ ओखा में प्रवेश पर जांच सेवाएं।
  • नौसेना के जहाजों को बुनियादी ढांचा, ओप रसद और डाइविंग समर्थन प्रदान करना।
  • उत्तर अरब सागर और डीप वाटर चैनल की मॉनीटरिंग बनाए रखना।
  • नौसेना रिपोर्टिंग अधिकारी और क्षेत्राधिकार के अंतर्गत पोर्ट के कर्तव्यों का विवरण प्रदान करना।
  • पोर्ट ओखा के आधार पर ओखा, कोस्ट गार्ड स्टेशन, ओखा और कम्यूनिकेशन कवर तथा कोस्ट गार्ड शिप के सपोर्ट का संचालन,होवरक्राफ्ट, आईसीजी बोट्स के सभी यूनिट के लिए प्रशासनिक/ रसद सपोर्ट।
  • पोर्ट ओखा में सुरक्षा उपायों को लागू करने के लिए आईएएफ, सेना, नागरिक और पुलिस अधिकारियों के साथ संपर्क करना।
  • उच्च संरचनाओं द्वारा संवर्धित किए जाने पर अधिक जनशक्ति/ संसाधनों पर कमांड और नियंत्रण।
  • गुजरात मरीन पुलिस प्रशिक्षण का संचालन
  • सागर प्रहरी बाल द्वारा गश्त का समन्वय
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