परिचय

भारतीय नौसेना (आईएन) में आत्मनिर्भरता के लिए प्रतिबद्धता 1961 में शीघ्र ही पहले स्वदेशी जहाज आईएनएस अजय के कमीशन के साथ सामने आयी। बाद में 60 के दशक में नौसेना ने रॉयल नेवी से टीओटी पर स्वदेशी तौर पर निर्मित लेंडर श्रेणी के फ्रिगेट के निर्माण का कार्य शुरू किया। तब से भारतीय नौसेना ने जहाज/पंडुब्बी की डिजाइन, निर्माण सामग्री, मशीनरी, उपकरण तथा प्रणालियों के स्वदेशीकरण को बढ़ाने और प्रोत्साहित करने के लिए स्वदेशी उद्योग के साथ भागीदारी करने में एक लंबा सफर तय किया है। हालांकि, कुछ उपकरण और प्रणालियां(संख्या में कम लेकिन कीमत में उल्लेखनीय) अभी भी विदेशों से मंगायी जा रही हैं।

नौसेना संबंधी प्रणालियों के क्षेत्र में विकास स्वाभाविक रूप से तकनीकी सघन है तथा इसके लिए पर्याप्त समय, धनराशि और संसाधनों को लगाने की जरूरत होती है। तकनीक में प्रगति अधिक समय तक प्रतिरक्षा को संरक्षित नहीं रखती हैं तथा यह अक्सर गैर असैनिक क्षेत्र और वाणिज्यिक क्षेत्र की चिंता होती है जो आज की तकनीक की ओर अग्रेषित करते हैं। अतः, निजी क्षेत्र और शैक्षिक समुदाय सहित, उद्योग अपनी अत्याधुनिक तथा मौजूदा अवसंरचना के किफायती उपयोग के द्वारा सशस्त्र बलों की जटिल जरूरतों को पूरा कर सकते हैं।

नौसेना के उपकरण की डिजाईन बहुत ही कठोर समुद्री वातावरण का सामना करने के लिए किया जाता है तथा आमतौर पर आईएचक्यू एमओडी(एन) स्थित पेशेवर निदेशालय द्वारा प्रवर्तित नौसेना इंजीनियरिंग मानकों (एनईएस)/भारतीय नौसेना(आईएन) विशेष के मानकों के लिए निर्मित होते हैं। कुछ विशेषताएं जो नौसेना के उपकरणों को सामान्य उद्देश्यों के उपकरणों से भिन्न करती हैं जिनमें आघात मानक, जेएसएस 55555 के अनुसार पर्यावरण संबंधी परीक्षण तथा ईएमआई/ईएमसी परीक्षण हैं। विभिन्न मानक जिनके लिए एक उपकरण को परीक्षण प्रक्रिया के साथ विकसित किया जाना अपेक्षित है उसे तकनीकी जरूरतों के विनिर्देश(एसओटीआरएस) में निर्दिष्ट किया जाएगा।

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