डोर्नियर
आईएनएएस 310: कोबरा
आईएनएएस 310 का कमीशन 21 मार्च 1961 को हाइरेस, सेंट राफेल में फ्रांस में भारतीय राजदूत, महामहिम नवाब अली यावर जंग द्वारा किया गया था। कमांडर एमके रॉय इस स्क्वाड्रन के पहले स्क्वाड्रन कमांडर थे। अप्रैल, 1961 को एलाइज 203 में, आईएनएस विक्रांत, निकट येवइलटन पर इसकी पहली डेक लैंडिंग की गयी थी। कोबरा ने उसी महीने में यूके से भारत की ओर आने वाले आईएनएस बेतवा और आईएनएस ब्यास के साथ पहले सामरिक अभ्यास में हिस्सा लिया। इस स्क्वाड्रन को स्वेज नहर मार्ग से वापस भारत भेजने के लिए 18 अगस्त, 1961 को आईएनएस विक्रांत पर उतारा गया। यह स्क्वाड्रन शुरू में आईएनएस गरुड़, कोच्चि में स्थित था एवं इसकी सैन्य कार्रवाई 18-20 दिसबंर, 1961 को व गोवा की आजादी के लिए आपॅरेशन विजय के दौरान देखी गयी। तदुपरांत इस स्क्वाड्रन को अप्रैल, 1970 में आईएनएस हंस, गोवा में स्थानांतरित कर दिया गया।
इस स्क्वाड्रन ने दिसंबर, 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान एक बार फिर भीषण सैन्य कार्यवाही में हिस्सा लिया। आईएनएस विक्रांत से उतारे गये एलीज ने पूर्वी पाकिस्तान पर भीषण हमले किए। 05 व 06 दिसंबर, 1971 की रात्रि को एलीज द्वारा तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान तट पर पोतों व स्थलेत्तर अधिष्ठानों पर किया गया हमला, नौसेना द्वारा रात में किया गया पहला हवाई हमला था।
सत्तर एवं अस्सी के दशक में यह स्क्वाड्रन नौसेना के पोत वाहक अभियानों का अभिन्न अंग बन गया था तथा वर्ष 1983 में इस स्क्वाड्रन ने 5000 डेक लैंडिंग पूरी होने पर एक भव्य समारोह मनाया। 26 वर्षों की अप्रतिम समर्पित सेवा के पश्चात एलीज को आखिरकार 10 मई, 1987 को आईएनएस विक्रांत से उतार लिया गया। हालांकि वे आगे भी प्रभावी बने रहे एवं माले से ऑपरेशन कैक्टस व श्रीलंका में ऑपरेशन पवन के दौरान सघन उड़ान भरते देखे गये। आखिरकार, 12 अप्रैल, 1991 को तत्कालीन नौसेना प्रमुख की अंतिम हवाई परेड में एलीज को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया गया।
इस स्क्वाड्रन को 26 अगस्त, 1991 को गोवा में अपना पहला डोर्नियर 228 वायुयान मिला। आईएन 221 एचएएल, कानपुर से कमांडर खंखोजे की देख-रेख में लाया गया। आईएन 221 को बाद में अगले एक वर्ष के दौरान चार और डोनिर्यर मिले। इस स्क्वाड्रन को ईएसएम सुइट से लैसे होने के बाद 1 अक्टूबर, 1998 को 'इन्फारर्मेशन वारफेयर स्क्वाड्रन' के तौर पर नया नाम दिया गया। यह स्क्वाड्रन तब से नौसेना का युद्ध सूचना प्रयास का प्रमुख केंद्र बना हुआ है एवं इसके खाते में अनेक प्रचालन ऐसे हैं जिन्हें सबसे पहले होने का गौरव प्राप्त है। यह स्क्वाड्रन निरंतर 'सबसे पहले प्रवेश – सबसे आखिर में बाहर निकलना’ एवं कभी भी व कहीं भी प्रचालनात्मक प्रतिबद्धता हो - कोबरा वहां हमेशा तत्पर रहते हैं, के अपने सिद्धांत व विश्वास के अनुरूप आचरण करता है।